मुहर्रमः पूरी अकीदत और ऐहतराम के साथ मनाया गया यौम-ए-आशूरा

नई दिल्ली, 09 अगस्त । राजधानी दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आज यौम-ए-आशूरा (मुहर्रम की दसवीं तारीख) पूरी अकीदत और ऐहतराम के साथ मनाया गया।

मुहर्रमः पूरी अकीदत और ऐहतराम के साथ मनाया गया यौम-ए-आशूरा

नई दिल्ली, 09 अगस्त (। राजधानी दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आज यौम-ए-आशूरा (मुहर्रम की
दसवीं तारीख) पूरी अकीदत और ऐहतराम के साथ मनाया गया।

कोरोना वायरस महामारी की वजह से दो साल से
मोहर्रम पर ताजियों का जुलूस नहीं निकल पाया था

लेकिन इस बार पाबंदियां हटने के बाद ताजियों का जुलूस
निकाला गया है।

इस मौके पर मुसलमानों ने हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत को याद
किया।


मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ताजियों के साथ अजादारी का जुलूस निकाला गया। धार्मिक जुलूसों और मजलिसों में 14 सौ
साल पहले कर्बला के मैदान में घटने वाली घटना को याद करके मातम मनाया। ताजियों के जुलूस में लोगों में


फल, शरबत वगैरह वितरित किए गए। दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों से निकाले गए ताजियों का जुलूस सफदरजंग
एयरपोर्ट स्थित कर्बला जोर बाग में जाकर समाप्त हुआ और वहीं पर ताजियों को दफ़न कर दिया गया। इस मौके


पर पुरानी दिल्ली के विभिन्न इलाकों से ताजियों का जुलूस निकाला गया जो पुरानी दिल्ली के विभिन्न स्थानों से
होते हुए पहाड़गंज, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, संसद मार्ग होते हुए कर्बला जोर बाग में जाकर समाप्त हुए।


इसी तरह के कई ताजिया जुलूस पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से भी निकाले गए। दक्षिण दिल्ली और बाहरी
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में भी ताजियों का जुलूस निकाला गया।

विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत निजामुद्दीन
औलिया की दरगाह से भी तैमूर लंग के शासन काल के समय की लकड़ी की बनी ताजिया का जुलूस निकाला गया


जो कर्बला जोर बाग पर जाकर समाप्त हुआ।


इस जुलूस के बारे में बताया जाता है कि यह दिल्ली का सबसे पुराना ताजियों का जुलूस है। लकड़ी के बने इस
ताजिए का निर्माण बादशाह तैमूर लंग ने कराया था

और उसके निधन के बाद से ही यह ताजिया हजरत
निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर रखा हुआ है।

इसे हर साल मोहर्रम के अवसर पर रंग-रोगन करके जुलूस की
शक्ल में निकाला जाता है और बाद में इसे फिर वापस लाकर दरगाह पर रख दिया जाता है।


दक्षिणी दिल्ली के मदनगीर, देवली, दक्षिणपुरी, खानपुर आदि क्षेत्रों में भी में ताजियों का जुलूस निकाला गया और
इसे दक्षिणपुरी स्थित कब्रिस्तान में दफन कर दिया गया।

इस मौके पर मातमी जुलूस भी निकाले गए। कर्बला शाहे
मरदां में मजलिस का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में शिया मुसलमानों ने भाग लिया और हजरत

इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। पुरानी दिल्ली की दरगाह पंजाब शरीफ में भी शिया मुसलमानों की तरफ
से मजलिस का आयोजन किया गया

जिसमें बड़ी संख्या में शिया मुसलमानों ने हिस्सा लिया और हजरत इमाम
हुसैन की याद को ताजा करने के लिए मातम किया।