सावन के गीतों से सजी लोक चौपाल

लखनऊ, 30 जुलाई (लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोक चौपाल में वक्ताओं ने कजरी गायन परम्परा का मूल स्वरुप एवं नये प्रयोग विषय पर अपने विचार रखे।c

सावन के गीतों से सजी लोक चौपाल

लखनऊ, 30 जुलाई  लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोक चौपाल में वक्ताओं
ने कजरी गायन परम्परा का मूल स्वरुप एवं नये प्रयोग विषय पर अपने विचार रखे। रविवार को


हजरतगंज के त्रिलोकनाथ रोड स्थित सेवा परिसर में वरिष्ठ लोक गायिका पद्मा गिडवानी की अध्यक्षता
में लोगों ने अपनी बात रखी, वहीं सावन गीतों की मनभावन प्रस्तुतियां भी हुई। संगीत अध्येता और


गायिका सौम्या गोयल ने कहा कि कजरी का नामकरण वस्तुत: सावन के काले बादलों के नाम पर हुआ
है। सावन की सरसता, घने काले बादलों के बीच पड़ने वाली रिमझिम फुहार, नयनों को सुख पहुंचाने


वाली हरियाली के बीच गाये जाने वाले कजरी गीतों के कथ्य में लोक मन के भाव प्रतिबिम्बित होते हैं।
पद्मा गिडवानी ने कजरी के पारम्परिक स्वरुप पर प्रकाश डाला।


सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि चौपाल में सावन गीत और नृत्य संग कविताओं की भी सरिता
प्रवाहित हुई। संगीत भवन की निदेशक निवेदिता भट्टाचार्या के निर्देशन में नेहा प्रजापति, स्नेहा प्रजापति,


सुमन मिश्रा और स्मिता पाण्डेय ने कैसे खेलन जइयो सावन मा कजरिया बदरिया घेर आई ननदी गीत
पर मनमोहक नृत्य किया। सौम्या गोयल ने पड़न लागी सखी सावन की फुहार सुनाया। अन्तरा के


निर्देशन में प्रवीन गौड़, अव्युक्ता, शीर्षा, अमेया, शुभी, अविका, मिहिका, कर्णिका, अथर्व, गुनाश्री आदि ने
समवेत स्वर में उमड़ घुमड़ घिर उठे गहन घन की प्रस्तुति दी। रीता पाण्डेय ने झूमे जियरा हमार आई


बरखा बहार, प्रियंका दीक्षित ने गोरी सावन में सुनाया। युवा कवि कृष्णा सिंह ने बादल आये जमकर
बरसे सारा सावन बीत गया तथा गीतकार सौरभ कमल ने सरहद से छुट्टी लैके जब घर अइबै सुनाया।